क्या लिखूं कभी भी ,

किसी भी वक्त ये बात मेरे समझ में नहीं आती
वरन कल्पनाओ का सैलाब यूँही दिलो में उमड़ता रहता है.
विचार यूँही दिलों में तैरती रहती है . 

उन कल्पनाओ और विचारो को मूर्त रूप देने के लिए,
मेरे पास शब्दों की कोई कमी नहीं महसूस होती है,
फिर भी ना जाने ये दिल क्या चाहता है कि मै क्या लिखूं ,
लिखने को तो मै विचारो के अथाह समुद्र में भी उतर सकता हू,
और उस समुद्र से मोतियों जैसी कल्पनाओ कि संसार रच सकता हूँ ,
फिर भी ये दिल ना जाने क्या ढूंढता है,
मुझे खुद भी ये महसूस नहीं होता है कि,
लेखन के लिए विचारो कि, कल्पनाओ की,
प्रमाणिकता की , तथ्यों की , रचनाओ की ,
रसिकता की और भी बहुत सारे चीजो की,
जो कि एक सुन्दर लेखन के लिए आवश्यक है,
वह सब कुछ मेरे दिलों दिमाग के गहराइयों में हर वक्त
उमड़ता रहता है.

फिर भी ना जाने आखिर दिल क्या लिखना चाहता है,
और इसी कशमकश में दिल बेचैन होते जा रहा है .
आज वर्षो बाद ना जाने दिल में क्या महसूस हुआ कि,

मै लिखने बैठा और अभी भी दिल बेचैन है कि क्या लिखूं .........!!!!!!!!!



                                      Submitted by 
                                                "Abdul kalam Azad"
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