मिले हर जख़्म को, मुस्कान से सीना नहीं आया 
अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया 
तुम्हारी और मेरी दास्तां में फ़र्क़ इतना है 
मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया





        Written by 
           Dr. Kumar Vishwas
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