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Sach ke liye lado mat saathi By Dr. Kumar Vishwas

"सच के लिए लड़ो मत साथी
भारी पड़ता है..................!
जीवन भर जो लड़ा अकेला,
बाहर-अन्दर का दुःख झेला,
पग-पग पर कर्त्तव्य-समर में,
जो प्राणों की बाज़ी खेला,
ऐसे सनकी कोतवाल को,चोर डपटता है.....!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है...!
किरणों को दागी बतलाना,
या दर्पण से आँख चुराना,
कीचड में धंस कर औरों को,
गंगा जी की राह बताना,
इस सब से ही अन्धकार का,सूरज चढ़ता है...!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है.....!"







         Written by 
              Dr. Kumar Vishwas

Himmat ye raushani badhh jaati hai by Dr. Kumar Vishwas

हिम्मत ए रौशनी बढ़ जाती है 
हम चिरागों की इन हवाओं से 
कोई तो जा के बता दे उस को 
चैन बढता है बद्दुआओं से..!






          Written by 
                Dr. Kumar vishwas

Ajab hai kayda duniyaa ye ishak by Dr. Kumar Vishwas

अजब है कायदा दुनिया ए इश्क का मौला,
फूल मुरझाये तब उस पर निखार आता है,
अजीब बात है तबियत ख़राब है जब से, 
मुझ को तुम पे कुछ ज्यादा प्यार आता है …!







         Written by 
                      Dr. kumar Vishwas

Sab Apne dil ke raaja hai by Dr. Kumar Vishwas

सब अपने दिल के राजा हैं सबकी कोई रानी है
कभी प्रकाशित हो न हो पर सबकी एक कहानी है
बहुत सरल है पता लगाना किसने कितना दर्द सहा 
जिसकी जितनी आँख हँसे हैं उतनी पीर पुरानी है.


             Written by 
                 Dr. Kumar Vishwas

Milen har jakhm ko muskan se by Dr. Kumar Vishwas

मिले हर जख़्म को, मुस्कान से सीना नहीं आया 
अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया 
तुम्हारी और मेरी दास्तां में फ़र्क़ इतना है 
मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया





        Written by 
           Dr. Kumar Vishwas

har ek nadiyaan ke hothon par by Dr. Kumar Vishwas

हर इक नदिया के होंठों पर समंदर का तराना है 
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है 
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है 
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है 






           Written by
              Dr. Kumar Vishwash

Tumhaare paas hun lekin jo doori hai by Dr. Kumar Vishwas

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ 
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन 
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ 






           Written by 
                                    Dr. Kumar Vishwas

Wo jo khud se kam nikalte hain by Dr. Kumar Vishwas

वो जो खुद में से कम निकलतें हैं ,
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं .
आप में कौन-कौन रहता है ?
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं...






                  Written by 
                     Dr. Kumar vishwash

Wo nazare jo kabhi shauk e tamanna the by Dr. Kumar Vishwas

वो नज़ारे जो कभी शौक ए तम्मना थे मुझे,
कर दिए एक नज़र मे ही पराये उस ने ,
रंगे-दुनिया भी बस अब स्याह और सफ़ेद लगे,
मेरी दुनिया से यूँ कुछ रँग चुराए उस ने …..!




         Written by 
                          Dr. Kumar Vishwas 

Har ekk chehre ko zakhmo ka aina na kaho by Rahat Indori


Har ekk chehre ko zakhmo ka aina na kaho..
ye zindagi to hai rahmat ise saza na kaho...
 
na jane kaun si mazburiyon ka qaidi ho..
wo sath chhod gaya hai to bewafa na kaho...
 
tamam shaher ne nezon pe kyun uchhala mujhe..
ye ittefaq tha tum is ko hadasa na kaho...
 
ye aur bat kii dushman hua hai aaj magar..
wo mera dost tha kal tak use bura na kaho...
 
hamare aib hamen ungaliyon pe ginwao..
hamari pith ke pichhe hamen bura na kaho...
 
main waqiyat ki zanjir ka nahin qayal..
mujhe bhi apane gunahon ka silsila na kaho..
 
ye shahar wo hai jahan rakshas bhi hai "Rahat"..
har ek tarase huye but ko dewata na kaho...!!!!

Nazar me shokhiyaan lab par mohbbat by Dr. Kumar Vishwas

नज़र में शोखि़याँ लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद में अभी सारा जमाना है
कई जीतें हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको
सिकंदर हूँ मुझे इक रोज़ ख़ाली हाथ जाना है 




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                          Dr. Kumar Vishwas

Hame maloom hai ki do dil judai sah nahi sakte by Dr. Kumar Vishwas


हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते,
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते !
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो,
जो लहरों में तो डूबे हैं मगर संग बह नहीं सकते !



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                     Dr. Kumar Vishwas

Jo koi samajh na paye wo baat hu mai .....

जो कोई समझ ना पाये  !
वो बात हूँ मै,
जो ढल के नई सुबह लाये !
वो रात हूँ मैं,
चले जाते हैं लोग दुनिया से रिश्ते बनाकर ,
जो कभी छोड़ के ना जाये,
वो साथ हूँ मैं !



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Kya likhu kabhi bhi... By Abdul kalam Azad


क्या लिखूं कभी भी ,

किसी भी वक्त ये बात मेरे समझ में नहीं आती
वरन कल्पनाओ का सैलाब यूँही दिलो में उमड़ता रहता है.
विचार यूँही दिलों में तैरती रहती है . 

उन कल्पनाओ और विचारो को मूर्त रूप देने के लिए,
मेरे पास शब्दों की कोई कमी नहीं महसूस होती है,
फिर भी ना जाने ये दिल क्या चाहता है कि मै क्या लिखूं ,
लिखने को तो मै विचारो के अथाह समुद्र में भी उतर सकता हू,
और उस समुद्र से मोतियों जैसी कल्पनाओ कि संसार रच सकता हूँ ,
फिर भी ये दिल ना जाने क्या ढूंढता है,
मुझे खुद भी ये महसूस नहीं होता है कि,
लेखन के लिए विचारो कि, कल्पनाओ की,
प्रमाणिकता की , तथ्यों की , रचनाओ की ,
रसिकता की और भी बहुत सारे चीजो की,
जो कि एक सुन्दर लेखन के लिए आवश्यक है,
वह सब कुछ मेरे दिलों दिमाग के गहराइयों में हर वक्त
उमड़ता रहता है.

फिर भी ना जाने आखिर दिल क्या लिखना चाहता है,
और इसी कशमकश में दिल बेचैन होते जा रहा है .
आज वर्षो बाद ना जाने दिल में क्या महसूस हुआ कि,

मै लिखने बैठा और अभी भी दिल बेचैन है कि क्या लिखूं .........!!!!!!!!!



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                                                "Abdul kalam Azad"

Diga nahi sakte vaado se tum by Abdul kalam Azad

डिगा नहीं सकते वादो से तुम ,
झुका नहीं सकते इरादो से तुम !
जिस्म है फौलाद का मेरा,
पिघला नहीं सकते जज्बातों से तुम .!!

                      
                 Submitted by 
                        "Abdul kalam Azad"

Har baat niraali thi by Abdul kalam azad

हर बात निराली थी,
मोहब्बत के साथ हर रात निराली थी। .!!
तन्हा थे जीवन में ,
खुशियों की हर ताक निराली थी..!!



            Submitted by
                      "Abdul kalam Azad "