बदनाम है कोई
अविरल धारा है कोई
बहती नदी का तारा है कोई
खेले थे हम मिल बचपन में
साथी है हर राह में कोई
निडर और वीर है कोई
अनजाने राहों में गुमनाम है कोई
हर मोड़ पे खड़ा है मेरा कोई
मुश्किलों में देता साथ है कोई
लेता पंगा मेरे खातिर
प्यार के लिए आतुर है कोई
फिर भी इस जग में मेरा
अनजान है कोई
बहती धारा के साथ
गुमनाम है कोई
लड़ता रहा है सच के लिए
फिर भी सलाखों में है कोई
मौत को बना धार
सबके लबों पे है कोई
मेरे रग रग में ,रमा है कोई
माफ़ करना करुणेन्द्र
जो गलती हुई हो हमसे
तेरे एहसास को , हम भुला न सकेंगे
तेरी अदाओं को , हम बदनाम कर ना
सकेंगे
ज़िन्दगी मिली थी तेरे सहारे ही
तुझे अपने जीवन में ,
गुमनाम कर न सकेंगे। .............
"अब्दुल
कलाम आज़ाद "