तन बेकल है मेरा
कर दे पूरी आस मेरी
बाकी रहे ना प्यास तेरी
ये जीवन तेरा
हर लम्हा मेरा
देखूं तेरी आँखों में
तेरी हर ख़्वाहिश मेरी
किया बेकल मन को मेरे
रहे उम्मीद बस तन को तेरे
तू आग भी
तू शबनम भी
रहे ना ज़िन्दगी में
अब कोई गम भी
देख कर तुझको भर जाए मन
ऐसी तू प्यास है तर जाये तन
करता हर लम्हा इंतज़ार तेरा
बनकर तू ईद का चाँद
कभी तू नज़र आ जाये
तो कभी तू बादलो में गम हो जाये
बेकरार है प्यास मेरी
बनकर तू शबनम
बुझा जा प्यास मेरी
"अब्दुल
कलाम आज़ाद "