कभी तेरा रूठ जाना
कभी हंसी लबों पे ठहरना
तो कभी लट आँखों पे गिरना
देख तेरी चंचलता
तू मन को भाती
है
यही अदा तेरी
मुझे अक्सर याद
आती है
ना दिन को चैन
ना रात को नींद
आती है
हर ख्वाब में
ख्वाब बनकर तू आती
है
करती अठखेलियां
तू मन को भाती है
तेरे होठो का एहसास
हर साँस कराती
है
लेकर बाँहो में तुझे
जीवन खास हो जाती
है
यही अदा तेरी
मुझे अक्सर याद
आती है। .......
" अब्दुल कलाम आज़ाद
"