"सच के लिए लड़ो
मत साथी
भारी पड़ता है..................!
जीवन भर जो लड़ा अकेला,
बाहर-अन्दर का दुःख झेला,
पग-पग पर कर्त्तव्य-समर में,
जो प्राणों की बाज़ी खेला,
ऐसे सनकी कोतवाल को,चोर डपटता है.....!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है...!
किरणों को दागी बतलाना,
या दर्पण से आँख चुराना,
कीचड में धंस कर औरों को,
गंगा जी की राह बताना,
इस सब से ही अन्धकार का,सूरज चढ़ता है...!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है.....!"
भारी पड़ता है..................!
जीवन भर जो लड़ा अकेला,
बाहर-अन्दर का दुःख झेला,
पग-पग पर कर्त्तव्य-समर में,
जो प्राणों की बाज़ी खेला,
ऐसे सनकी कोतवाल को,चोर डपटता है.....!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है...!
किरणों को दागी बतलाना,
या दर्पण से आँख चुराना,
कीचड में धंस कर औरों को,
गंगा जी की राह बताना,
इस सब से ही अन्धकार का,सूरज चढ़ता है...!
सच के लिए लड़ो मत साथी,भारी पड़ता है.....!"
Written by
Dr. Kumar Vishwas